किसने कहा वह बोलता नहीं
हंसता नहीं।
जब-जब मैंने उसे देखा
अपनी जिंदगी जीते हुए देखा ।
छिड़की थी जब मैंने
अपने हाथों से कुछ बूंदे
उस पर पानी की
तो मानों खुश होकर लहरा दिए थे
उसने भी अपने पत्ते रूपी हाथ
करता था वह भी मुझसे
उतनी ही बात
जितनी करती थी मैं उससे बात।
जब जाती थी मैं मिलने
उससे सुबह-सुबह
तो मानो, सोया हुआ चेहरा
उठा लेता था
और हो जाता था मिलने को
उतना ही व्याकुल।
नहीं पता
उसे मैं क्या नाम दूं ?
अपना बच्चा कहूं या अपना दोस्त ।
जब था वो एक इंच का
तब से बढ़ते हुए देखा था, मैंने उसे
जब- जब खुद को
महसूस किया था अकेला मैंने
तो बैठ जाती थी
जाकर उसके समीप।
करता था वह पूरी कोशिश
ताकि बांट सके मेरे दुख
हिला-हिलाकर अपने पत्ते
पूछता था मेरा सुख-दुख
समझदारी के साथ-साथ
हो गया है आज वो
मेरे जितना ही बड़ा
मिलने के लिए अब मुझसे
या देखने के लिए
नहीं ताकना पड़ता
उसे आसमान की तरफ ।
मिलाता है अब वो मुझसे
अपने लंबे हाथ
और कभी-कभी तो
भर लेता है वो मुझे
अपने आलिंगन में।
Looks like plant has grown enough.
मेरा दोस्त कविता में पता चलता है कि मनुष्य अगर प्रकृति से जुड़ा होता है तो प्रकृति भी उससे जुड़ने लगती हैं अकेलापन महसूस होने पर प्रकृति से बात करना , बून्दे छिटकने पर जागना , सुख – दुख पूछना जैसे बिम्ब वास्तव में दोस्त की छवि को चित्रित करना है इस हिसाब से शीर्षक ‘ मेरा दोस्त’ नाम सटीक हैं कविता के अंत में समझदारी के साथ के साथ- साथ हो गया है आज वो मेरे जितना ही बड़ा से कविता समझने में थोड़ी उलझन लगी यदि समझदारी शब्द का प्रयोग किया है तो कैसी समझदारी? ये आप अपनी समझदारी से उसकी समझदारी की तुलना कर सकते थे। यदि आप ने पत्तो के लिए हाथ का प्रयोग किया है तो फिर कविता में वह हाथ ही लिखते जैसे -हिला -हिलाकर अपने पत्ते का प्रयोग अपने हाथों के इशारे से पूछता था कई सुख-दुख ( केवल उदाहरण के तौर पर) काफ़ी जगह शब्द एक्स्ट्रा लगे जैसे – छिड़की थी जब मैंने ,अपने हाथों से कुछ बूंदे- छिड़की थी जब मैंने कुछ बूंदे उस पर , मुझे लगता है यहां पानी और हाथ भी नहीं लिखोगे तो पाठक समझ जायेंगे की पौधों पर पानी ही छिड़का गया है तभी जागे भी हैं। कविता में ऐसे शब्द छोड़ देने चाहिए जो लगभग पढ़कर पाठक पहचान सकते हैं ,ऐसा मेरा मानना है हो सकता है आपका मत दूसरा हो ।