गोल गोल आटे की लोई
धारण किये बाटी का रूप
एक इंच का मुँह खोलकर
बोले जोर-जोर चिल्लाकर
मुझको है चोखे से मिलना
जो है मेरा दायां हाथ
जिसमें है आलू के साथ
बैंगन, मिर्च, प्याज
और लहसुन का मेल
साथ में थोड़ा सा
कच्ची घानी का तेल
हां… भूल मत जाना
उस राजा को
जो महफ़िल में भरता है रंग
मन को कर देता है खुश
जिसके बिना हो सब फीका फीका
हां हां वही…
और हम सबका दुलारा
नमक राजा।
हां ले चलो मुझे
मेरे उस दोस्त के पास
साथ में भूल न जाना
मेरा बांया हाथ।
जो खुश करता है सबको
नहीं पसन्द हो जिसको
सूखा खाना
जिनको अटकता हो
बाटी और चोखे का मेल
उस कमी को भर देती है
मेरी दोस्त दाल का मेल
जैसे हूँ मैं अधूरी
उनके बिना
वैसे ही वो हैं अधूरे मेरे बिना
जब भी लिया जाएगा मेरा नाम
साथ ही लिया जाएगा
हमेशा…
चोखे और दाल का नाम
ऐसा ही है हमारा साथ।
नहीं जरूरत चूल्हे की
न जरूरत आलीशान जगह की
ना ही जरूरत
बहुत पैसों की।
नहीं हो किसी के पास पैसा
या न हो घर द्वार
तो सड़क किनारे
या पेड़ के नीचे
जलाकर आग
मिल सकता है
हर इंसान हमसे।
कविता तो अच्छी है लेकिन दाएं बाएं हाथ को भी साथ लेकर चलना ये समझ नहीं आया। बनाते तो दोनों हाथ की सहायता से ही है उसको तो उस बनाने वाले आदमी को साथ ले जाने के बजाए हाथ से ले चलना थोड़ा अलग तरह का लगा। बाकी कविता शुरू से अंत तक सही चल रही थी।