होने वाली है
मूसलाधार बारिश
दो -चार दिनों
ऐसी खबरें सुनते ही
बाबा और मैं
लग जाते अपने अपने
कामों में
बन जाते खुद साइंसटिस्ट
करने लगते कई प्रयोग
भरते
मिट्टी से बनी दीवारों की
दरारों को
जिसमे पलते कई जीव
तो कभी करते मरम्मत
टूटी टीनो की
ढकने लगते त्रिपाल से
तो कही टीनो के टुकड़ो से
ताके बचाया जा सके खुद को
अगला प्रयोग करने के लिए
और करता जुगाड़
कई सामानों को
इधर से उधर रखने का
इस तरह
कुछ ख़तरे कम हो जाते
बचा पाते कुछ चीजों को
सीलन से
और जंग लगने से
पर बन जाते खुद शिकार
मुश्किल होता
सरकाने में चारपाई को
वजह नही की थी भारी
थी वजह जगह की
इसलिए आता हमारे हिस्से में
टपकती छत का हिस्सा
हर बरसात में !
आधी उम्र बीत गई
बाबा की प्रयोगों में
और आधी
डरते -डरते ऐसा डर जो
होता
मानव और प्रकृति के बीच
और अब बीतने वाली थी
मेरी भी उम्र
कई चिंताओं ,संघर्ष औऱ डर के बीच
क्योंकि
इस बारिश में घर की
दीवारे कुछ खिसक सी गई
धस चुके थे कई कोने
पानी के अंदर
खा चुकी थी काई हर
कोने को
लिपट गई सीलन
हर कपड़ो पर
सही सलामत बचे
केवल
बाबा के प्रयोग
जिसका इस्तेमाल करता हूं मैं
जीने के लिए
हर बरसात में
विषय अलग है और लगता नहीं कि यह विषय कविता में ढालने लायक है और सबकुछ प्रत्यक्ष कह दिया गया है। हालांकि इन समस्याओं के बावजूद फीलिंग कविता की ही आती है। संभवतः इसका आखिरी हिस्सा ही उसे वह फीलिंग देता है। प्रूफ की समस्याएं भी कविता में बची रह गई हैं यानी कुछ जगहों पर शब्द छूट गए हैं।
“मूसलाधार बारिश
दो-चार दिनों में” या दो-चार दिन।
“इसलिए आता हमारे हिस्से में
टपकती छत का हिस्सा
हर बरसात में !”
यहां लग रहा है जैसे बरसात में घर दे देते हों और फिर छीन लेते हों।
“इस बारिश में घर की
दीवारे कुछ खिसक सी गई
धस चुके थे कई कोने
पानी के अंदर
खा चुकी थी काई हर
कोने को
लिपट गई सीलन
हर कपड़ो पर
सही सलामत बचे
केवल
बाबा के प्रयोग”
ये हिस्सा मैं नहीं समझ पायी।
अगर घर के ऊपर टीन है और दीवार खिसक जाएगी तो पानी तो आएगा ही। और ऐसी किसी दीवार है कि वो खिसक गई?? पर गिरी नहीं।
और बाबा ने तो काफी प्रयोग किये थे तीन को ठीक करने के, सिलनसे बचाने के, दीवार को भरने के। अगर ये सब नहीं बच पाया है तो कैसे कह सकते हैं कि
“सही सलामत बचे
केवल
बाबा के प्रयोग”
हो सकता है मेरे समझने में दिक्क्क्त हो क्योंकि मैं ये सब सीन नहीं देखी हूँ।
बाकी कविता अच्छी है। गरीबो की एक दुश्मन बारिश भी है ही। हर वक़्त चिंता सताए रहती है कि घर न डूब जाए, पानी न भर जाए।
कविता अच्छी है।
शुरुआत के कुछ अंशों में और एकाध जगह बाद में भी कुछ गद्यात्मकता आ गई है। कहीं-कहीं कोई शब्द छूट गया है (जैसे तीसरी लाइन में *में* छूट गया है) तो कई जगह एकाध शब्द वाक्य से टूटकर अलग लाइन अकेला पड़ गया है।
अंत से पहले जहां *इस बारिश* की चर्चा हुई है वहां परिवर्तन जरा अस्वाभाविक बन गया है। दीवारों में सीलन, कोनों का धँसना और बहुत कुछ अचानक इसी साल हो गया है।
फिर भी दृश्य अच्छे गढ़े हैं।
नरेटर को भरपूर जगह मिली है। कविता में चरित्र उभरता है उसका।
कविता का अंत बहुत परफेक्ट लगा।
कविता अच्छी है। स्टोरी भी पता चल रही है लेकिन कविता कहीं-कहीं अस्पष्ट हो गई है। इस कविता में चीजों के बचाने को प्रयोग कहा गया है लेकिन क्यों?
और अगर बाबा के प्रयोग सफल थे तो दीवारें क्यों धंस गई कोने में? सबसे लास्ट में भी बाबा के उसी प्रयोग का इस्तेमाल करने की बात करता है।
*बन जाते खुद साइंटिस्ट्स
करने लगते कई प्रयोग*
यहाँ साइंटिस्ट शब्द use किया गया है पर कंस्ट्रक्शन से रिलेटिड काम के लिए इंजीनियरि होते हैं ।
शब्दो का प्रयोग कई जगह ज्यादा किया गया है
*सीलन से
और जंग लगने से * की जगह
*सीलन और जंग*
कविता का विषय अच्छा है बारिश उन लोगो के लिए अच्छी है जो पक्के घरों में है पर गरीबो के लिए मुसीबत है । गरीबी के साथ प्रकृति की मुश्किलें भी है ।
आखिरी हिस्से में लिखा है
” इस बारिश में घर की
दीवारे कुछ खिसक सी गई
धस चुके थे कई कोने
पानी के अंदर
खा चुकी थी काइ हर
कोने को…*
इन सबसे लगता है कि बारिश के बाद का दृश्य है ( हालत है ) पर ऊपर अभी मरम्मत शुरू की गई थी कि बारिश आने वाली है । पहला पैरा तो परसेंट में चलता है जहाँ बारिश आने के पहले की तैयारी
पर दूसरे में स्प्ष्ट नही है कि ये पास्ट है कि परसेंट