पहले का भारत और आज का भारत

क्या यह वही भारत है ? 

जो  हजारों लाखों कुर्बानियों के बाद

1947 में हमें मिला था 

जिसे महात्मा गांधी, नेहरू और भगत सिंह 

ने हमे अपनी कुर्बानी देकर चुकाया था।

नहींं ये वो भारत तो नहींं लगता।

ऐसा तो मेरा भारत नहींं था।

आज पूरे भारत का नक्सा ही बदल गया है।

दक्षिण पंथ का प्रभाव पूरे भारत पर पड़ रहा है।

मनुस्मृति की मानसिकता को जनता के दिमाग मे

एक इंजेक्शन की तरह डाला जा रहा है,

राष्ट्रवादी विटामिन का फायदा बताकर

जोकि शरीर मे जाते ही एक जहर घोलती है,

हिंदुस्तान, पाकिस्तान और आतंकवाद के नाम का

लेकिन लोग एक दूसरे को विटामिन दे रहे है,

और खुद खा भी रहे है।

लोगो को पता ही भी चल रहा है कि 

ये जहर केवल उनके अंदर ही नहीं,

बल्कि आने वाली पीढ़ियों के अंदर भी घुलता जा रहा है।

जिसका पता हमें आने वाले समय मे चलेगा 

सबसे बड़ी विडंबना यह है कि

भारत वह 72 साल के पहले वाला भारत नहींं रहा

भारत का नक्सा हर दिन दीमक चाटता जा रहा है 

लेकिन अफसोस कि 

लोग उसको ही भारत समझ रहे है।

मानवीयता खत्म होती जा रही है लोगो के प्रति

पशुओं ,पंछियो पेड़ पौधों की तो बात ही छोड़ दीजिए।

लोग अच्छे और बुरे की पहचान करना,

किस पर गर्व और किसका सम्मान करना चाहिए 

इसका फर्क नहींं कर पा रहे है।

इसलिए ही तो रवीश कुमार को मिले

मैग्सेसे अवार्ड पर मीडिया चुप थी।

मनुष्य और मनुष्य में भेद तो 

कई सालों से चला आ रहा है।

अब पशुओं और जानवरों को भी 

एक दूसरे से बंटा जा रहा है।

इंसानों को गाय के नाम पर मारा जा रहा है।

प्रेमी प्रेमियों को ऑनर किलिंग, 

मासूम लोगो को मॉब लॉन्चिग के नाम पर,

पेड़ से बांधकर 

खुले आम मार दिया जा रहा है।

हर रोज स्त्रियों का बलात्कार हो रहा है

और

चुप्पी ने इस देश मे अपनी जड़ें जमा ली है।

क्या 72 साल पहले ऐसा ही था मेरा भारत?

विकास तो आज 72 साल से ज्यादा हुआ है।

इसलिए तो आज देश का एक -एक बच्चा 

भूख से मर रहा है।

किसान और मजदूर हर घण्टे पेड़ पर लटक कर,

नदी में कूदकर अपनी जान दे रहा है।

किसानों,मजदूरों,गरीबो का घर पानी मे दुब रहा है,

फसलें बर्बाद हो रही है ।

विरोध कर रहे लोगों पर 

गोली और आंसू गैस दागा जा रहा है।

हजारों की तादात में लोग मर रहे है लेकिन 

बताया कुछ को जा रहा है ।

क्या यही है वो भारत?

यह देश बहुत ही अनोखा है इस दुनिया मे

यहाँ अचानक से सब कुछ होता है।

कभी रात के 8 बजे नोट बंदी होती है,

कभी अचानक से 72 साल पहले किये गए

वादों को तोड़ा जाता है ।

नियमो को बदला जाता है 

लोगो को खुद उनके ही घर मे 

कैदी बनाकर कैद कर दिया जाता है।

सारी सुविधाएं बंद कर दी जाती है।

लोगो की चीखें और लोगो की आवाज को 

दबा दिया जाता है फिर

तीन हिस्सों में बांट दिया जाता।

मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से 

आजाद करवाया जा रहा है ।

इस नियम से हजारों लोग खुश है 

तालिया बजा रहे है।

इस सरकार की पीठ थपथपा रहे है और

गर्व से सीना फुलाकर सिर ऊँचा कर रहे है।

जब कि इस देश मे हिन्दू महिला भी,

सब कुछ करने को आजाद नहीं है।

ऐसा ही था क्या मेरा भारत?

गाँधी, नेहरू,अम्बेडकर और भगतसिंह के इस देश मे,

गर्व करने की परिभाषा नई गढ़ी जा रही,

तरंगे को पहले,

एवरेस्ट की चोटी, क्रिकेट के मैदान , लाल किले और चाँद पर,

गाड़ कर लोग गर्व महसूस करते थे।

आज किसी के सीने में झंडा गाड़ना ,

बहादुरी और गर्व का प्रतीक माना जा रहा है।

यहां कुछ भी किया जा सकता है। तिरंगे झंडे को अब कही भी गाड़ा जा सकता है

रोजगार के नाम पर पकौड़ा बेचवाया जा सकता है 

और!

मंदी की भट्टी में झोंका का जा सकता है।

अपने ही देशवासियों को देशद्रोही कहकर,

देश से निकला जा सकता है।

क्या यही सपनो का भारत है क्या?

नेहरू जी ने भारत के बंटवारे की आखरी रात को ,

अपने भाषण में कहा था कि

‘वह हर इंसान के एक-एक आँख से आंसू पोछ देना चाहते है’।

लेकिन आज के समय मे हर एक आँख रो रही है।

कई सालों से 

धर्म के नाम पर लोगो को लड़ाया जा रहा है।

इसलिए ही अभी तक

मंदिर मज्जिद का विवाद खत्म नहीं हुआ ।

कहते है कि मुसलमानों ने

हिंदुओ के देवी देवताओं की मूर्तियों को तोड़ कर,

मंदिर को लूट लिया। 

हजारों लाखों लोगों की आस्थाओं पर चोट की।

आज कौन किसकी आस्था को चोट पहुँचा रहा है।

आज इसी देश मे एक तरफ

दलितों के रविदास मंदिर को,

तोड़ा जा रहा

वही आयोध्या में,

राम मंदिर बनवाने की बात चल रही है।

क्या यह हजारों लोगों की आस्था पर चोट नहींं है क्या?

यहाँ रातो रात,

भगतसिंह, राजगुरु के साथ वीरसावरकर की मूर्ति 

लगा दी जाती है।

जिस नाथूराम गोड़से ने गांधी जी की हत्या की,

उस गांधी जी की हत्याकांड में दोषी वीरसावरकर को 

कला पानी की सजा मिली थी।

उसकी मूर्ति भगतसिंह, राजगुरु जैसे,

महान वीरो के साथ लगाया जा रहा।

इस देश मे

नाथूराम गोड़से ,वीरसावरकर को स्थापित करने की

पुरजोर कोशिश की जा रही है

इस तरह की तमाम रणनीति रची जा रही है।

क्या इसको ही भारत कहे क्या?

नहीं यह तो पहले वाला भारत नहींं लगता 

हजारों की तादात में लोग चुप है

शायद

लोगो ने हालात से समझौता कर लिया है।

लेकिन याद रहे कि हमारी चुप्पी एक दिन

हमसे हिसाब मांगेगी।

हम तभी चुप रहेंगे 

मगर दोनों चुपी में बहुत अंतर होगा।

जिस अंतर को भरने के लिए हम नहींं होंगे।