वेश्या

बदनाम हैं सिर्फ वही स्त्रियां 
जो कमाती हैं पैसा
बेचकर अपना शरीर 
जो मिटाती हों किसी के तन की भूख
पूछती हूँ मैं इस दुनिया से 
क्या गलत किया था 
उस दिन मैंने
जो दिया गया था मुझे ही
चरित्रहीन का नाम??

बिलख रहे थे उस रात 
कोठरी में मेरे बच्चे
भूख की उठती पीड़ा से
मांग बैठी थी मैं 
भीख उस अमीरजादे से
दूध भरी उन मासूम  
आंखों की खातिर
हो गयी थी मैं मजबूर
सोने के लिए 
साथ उसके बिस्तर पर
सिर्फ मैंने नहीं त्यागे थे 
अपने वस्त्र
उस रात त्यागे थे 
उसने भी अपने वस्त्र
मजबूर थी मैं पेट की खातिर
और वो मजबूर था 
अपनी प्यास की खातिर
पर इस जालिम दुनिया ने
मुझे ही क्यों दिया था 
वेश्या का नाम? 

क्यों सही है ईटा ढोना
बर्तन मांजना, झाड़ू लगाना ?
क्यों गलत है सेक्स करना? 
किया था हम दोनों ही स्त्रियों ने
अपने शरीर का इस्तेमाल
दोनों कामों की तुलना में
देखा गया उसके काम को
सम्मान भरी नज़रो से
वहीं देखा गया मेरे काम को
अपमान और घृणा की नजरों से।

One Reply to “वेश्या”

  1. सिर्फ मैंने नहीं त्यागे थे अपने वस्त्र, उस रात त्यागे थे उसने भी अपने वस्त्र । कविता कि ये पंक्तियां बहुत खूबसूरत लगी और फिर कहना दुनिया ने मुझे ही क्यों वैश्या का नाम दिया ये पाठकों के चिंतन का विषय है । पर इसी के बीच मजबूर थी मैं पेट के खातिर और वो मजबूर था अपने प्यास के खातिर ये थोड़ा सही नहीं लगा । मजबूरी को बताकर उसके साथ प्यास शब्द जोड़ देना व्यंग्य के रूप में लगता है और ये ऐसा व्यंग्य उस पर हैं जो सेक्स कि खरीदी करते हैं । मतलब कि सेक्स की जो खरीदी करें वो भी गलत ही हैं जबकि इसे काम माना जा रहा है तो सेक्स खरीदना भी कोई गलत नहीं परंतु कुछ शर्तें होनी चाहिए कि जो वर्कर है वह अपना काम स्वतंत्र रूप से करे कोई उसे टॉर्चर न करे । आधी से ज्यादा स्त्रियां को कई मजबूरी के कारण इस काम में आना पड़ता हैं तो इस कविता कि सेक्स वर्कर भी ऐसी ही हैं जिसे ये काम पसंद तो नही पर पेट की खातिर करना पड़ रहा हैं।

    स्त्रियों के लिए बर्तन माँझना, झाड़ू लगाना, ईटा ढोना सम्मान का काम बताया गया हैं हम कह सकते हैं कि ये सेक्स वर्कर के काम से थोड़ा ज्यादा सम्मान का माना जा सकता हैं परंतु पूरी तरह नहीं । उनके लिए कई तरह कि गाली बनी हुई है जो लगभग सेक्स वर्कर से जुड़ी हुई है। जिस तरह सेक्स वर्कर अपने काम को छिपाती हैं उसी तरह दूसरे के घर काम करने वाली कभी समाज में ये नहीं बोल पाती कि हम ऐसा काम करते हैं अगर तुलना करनी चाहिए तो जो औरते सरकारी जॉब या प्राइवेट जॉब करती हैं उससे होनी चाहिए थी जिसे समाज वास्तव में सम्मानित जॉब मानता है।

    कविता कि खासियत है कि ये केवल सेक्स वर्कर कि समस्या को ही नहीं उठाती बल्कि श्रम के विभाजन पर भी सवाल उठाती हैं समाज में पहले से ही तय हो गया हैं कि कौन- सा काम गलत और कौन -सा सही । इस पर भी समाज को नये ढंग से सोचना चाहिए ।

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